जीने Poetry (page 7)

इक सवाल ख़ुदा-ए-बरतर से

साजिदा ज़ैदी

हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला

साहिर लुधियानवी

लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं

साहिर लुधियानवी

तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ

साहिर लुधियानवी

चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है

साहिर लुधियानवी

दर्द की सूरत में वो उम्दा सा तोहफ़ा दे गया

सहर महमूद

नूह के बा'द

सहर अंसारी

हिसाब-ए-शब

सहर अंसारी

जज़्बा-ए-सोज़-ए-तलब को बे-कराँ करते चलो

साग़र सिद्दीक़ी

होली

साग़र ख़य्यामी

मैं ज़िंदा हूँ

सईद नक़वी

अदू से शिकवा-ए-क़ैद-ओ-क़फ़स क्या

सईद आसिम

नहीं मा'लूम जीने का हुनर कैसा रखा है

सादिया सफ़दर सादी

तन्हाई तामीर करेगी घर से बेहतर इक ज़िंदान

साबिर ज़फ़र

क़िस्मत में अगर जुदाइयाँ हैं

साबिर ज़फ़र

नीस्त बे-यार मुझ को हस्ती है

रिन्द लखनवी

मुझे भी यूँ तो बड़ी आरज़ू है जीने की

रिफ़अत सुलतान

अगर क़दम तिरे मय-कश का लड़खड़ा जाए

रिफ़अत सुलतान

मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है

रज़ा हमदानी

हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे

रज़ा हमदानी

ज़िंदगी के कैसे कैसे हौसले पथरा गए

रौनक़ रज़ा

शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है

रसूल साक़ी

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

राशिद फ़ज़ली

सफ़र

राशिद आज़र

मालूम है वो मुझ से ख़फ़ा है भी नहीं भी

राशिद आज़र

ख़याल की तरह चुप हो सदा हुए होते

राशिद आज़र

कहने को यहाँ जीने का सामान बहुत है

रशीदुज़्ज़फ़र

ज़ात के कमरे में बैठा हूँ मैं खिड़की खोल कर

रशीद निसार

जोश-ए-वहशत मेरे तलवों को ये ईज़ा भी सही

रशीद लखनवी

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