जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊर आ जाता है
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
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क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी
अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
ख़ुद्दारियों के ख़ून को अर्ज़ां न कर सके
तरह-ए-नौ
मैं जागूँ सारी रैन सजन तुम सो जाओ
आवाज़-ए-आदम
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें