वज़ीर आग़ा कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वज़ीर आग़ा

वज़ीर आग़ा कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वज़ीर आग़ा
नामवज़ीर आग़ा
अंग्रेज़ी नामWazir Agha
जन्म की तारीख1922
मौत की तिथि2010
जन्म स्थानSargodha

ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम

ये कैसी आँख थी जो रो पड़ी है

या रब तिरी रहमत का तलबगार है ये भी

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर

वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें

वो अपनी उम्र को पहले पिरो लेता है डोरी में

उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के

उम्र भर उस ने बेवफ़ाई की

थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था

समेटता रहा ख़ुद को मैं उम्र-भर लेकिन

सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र ये है

रेत पर छोड़ गया नक़्श हज़ारों अपने

क़िस्मत ही में रौशनी नहीं थी

पहना दे चाँदनी को क़बा अपने जिस्म की

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो

किस की ख़ुशबू ने भर दिया था उसे

खुली किताब थी फूलों-भरी ज़मीं मेरी

ख़ुद अपने ग़म ही से की पहले दोस्ती हम ने

करना पड़ेगा अपने ही साए में अब क़याम

कैसे कहूँ कि मैं ने कहाँ का सफ़र किया

कहने को चंद गाम था ये अरसा-ए-हयात

जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया

इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें

दिए बुझे तो हवा को किया गया बदनाम

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

चलो अपनी भी जानिब अब चलें हम

बंद उस ने कर लिए थे घर के दरवाज़े अगर

अजब तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी हम ने

ऐसे बढ़े कि मंज़िलें रस्ते में बिछ गईं

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