या रब तिरी रहमत का तलबगार है ये भी
थोड़ी सी मिरे शहर को भी आब-ओ-हवा दे
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रात भर इक सदा
सफ़ेद फूल मिले शाख़-ए-सीम-बर के मुझे
पहना दे चाँदनी को क़बा अपने जिस्म की
धूप के साथ गया साथ निभाने वाला
सफ़र
वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे
सितारा तो कभी का जल-बुझा है
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र ये है
चुटकी भर रौशनी
इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें
रंग और रूप से जो बाला है
सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना