या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर
या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे
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बंधन
पहना दे चाँदनी को क़बा अपने जिस्म की
ज़ात के रोग में
तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल
ऐसे बढ़े कि मंज़िलें रस्ते में बिछ गईं
सितारा तो कभी का जल-बुझा है
दीवार-ए-गिर्या
कोह-ए-निदा
मैं और तू
ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम
धूप के साथ गया साथ निभाने वाला