वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें
तवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना
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ज़ात के रोग में
कोह-ए-निदा
कितनी बार बुलाया उस को
या रब तिरी रहमत का तलबगार है ये भी
सकता
अंकबूत
मैं और तू
गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा
सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है
आसमाँ पर अब्र-पारे का सफ़र मेरे लिए
दरमाँदा
अब तो आराम करें सोचती आँखें मेरी