दिए बुझे तो हवा को किया गया बदनाम
क़ुसूर हम ने किया एहतिसाब उस का था
Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया
इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें
ख़ुद से हुआ जुदा तो मिला मर्तबा तुझे
अलमिया
थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था
दीवार-ए-गिर्या
तुम जो आते हो
कराँ-ता-कराँ
तर्ग़ीब
गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा
उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के
तुझे भी याद तो होगा