खुली किताब थी फूलों-भरी ज़मीं मेरी
किताब मेरी थी रंग-ए-किताब उस का था
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अब तो आराम करें सोचती आँखें मेरी
करना पड़ेगा अपने ही साए में अब क़याम
मैं और तू
धूप के साथ गया साथ निभाने वाला
रेत पर छोड़ गया नक़्श हज़ारों अपने
ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम
लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो
थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था
सकता
आवेज़िश
अब दिन की बातें करते हैं
अंकबूत