करना पड़ेगा अपने ही साए में अब क़याम
चारों तरफ़ है धूप का सहरा बिछा हुआ
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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तुम जो आते हो
किस किस से न वो लिपट रहा था
चलो अपनी भी जानिब अब चलें हम
दरमाँदा
दीवार-ए-गिर्या
लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो
ख़ुद अपने ग़म ही से की पहले दोस्ती हम ने
सुनो उजड़ा मकाँ इक बद-दुआ है
अब दिन की बातें करते हैं
वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें
जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया
अंधी काली रात का धब्बा