कैसे कहूँ कि मैं ने कहाँ का सफ़र किया
आकाश बे-चराग़ ज़मीं बे-लिबास थी
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(603) Peoples Rate This
वो परिंदा है कहाँ शब को चहकने वाला
लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो
तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को
आहिस्ता बात कर कि हवा तेज़ है बहुत
दिए बुझे तो हवा को किया गया बदनाम
सफ़ेद फूल मिले शाख़-ए-सीम-बर के मुझे
अब दिन की बातें करते हैं
चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं
चलो अपनी भी जानिब अब चलें हम
सारी उम्र गँवा दी हम ने
अंकबूत
सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना