आहिस्ता बात कर कि हवा तेज़ है बहुत
ऐसा न हो कि सारा नगर बोलने लगे
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गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा
उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना
थकन
ये किस हिसाब से की तू ने रौशनी तक़्सीम
जब आँख खुली मेरी
लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो
किस किस से न वो लिपट रहा था
रंग और रूप से जो बाला है
रेत पर छोड़ गया नक़्श हज़ारों अपने
बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया
मैं और तू
कोह-ए-निदा