अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
क्या चाहती है उन की नज़र पूछते चलो
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देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
हर क़दम मरहला-दार-ओ-सलीब आज भी है
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
विर्सा
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
मिरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूँ
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके