अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके
नहीं चराग़ तो क्या बर्क़ तो चमकती है
Gulzar
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ये दुनिया दो-रंगी है
मेरे गीत तुम्हारे हैं
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
कुछ बातें
इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बार
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के
हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
मिरे अहद के हसीनो
पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
बे पिए ही शराब से नफ़रत