बे पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है
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मता-ए-ग़ैर
तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को
आज
मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अ'तों से न गिर
जान-ए-तन्हा पे गुज़र जाएँ हज़ारों सदमे
दिल अभी
आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
ज़मीं ने ख़ून उगला आसमाँ ने आग बरसाई
तपते दिल पर यूँ गिरती है
देखा तो था यूँही किसी ग़फ़लत-शिआर ने