वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
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तेरी आवाज़
हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
जीवन के सफ़र में राही
ख़ुद-कुशी से पहले
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
मुझे सोचने दे
कोई दिल की चाहत से मजबूर है
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें