मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अ'तों से न गिर
बुलंद बाम-ए-हरम ही नहीं कुछ और भी है
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नया सफ़र है पुराने चराग़ गुल कर दो
तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते हो
गुरेज़
जो लुत्फ़-ए-मय-कशी है निगारों में आएगा
हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
न मुँह छुपा के जिए हम न सर झुका के जिए
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो
मायूस तो हूँ वा'दे से तिरे
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने