मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैं ने
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आज की रात मुरादों की बरात आई है
किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे
मुझे सोचने दे
बंगाल
दुल्हन बनी हुई हैं राहें
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
इक और भी है मुंसिफ़
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
मादाम
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स
ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से