मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ
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यकसूई
ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है
एक मुलाक़ात
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के
तुलू-ए-इश्तिराकियत
बे पिए ही शराब से नफ़रत
शर्मा के यूँ न देख अदा के मक़ाम से
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अ'तों से न गिर
अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो