मुझे भी यूँ तो बड़ी आरज़ू है जीने की
मगर सवाल ये है किस तरह जिया जाए
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तू मिरी बात का जवाब न दे
अब कहीं साया-ए-गेसू भी नहीं
दिल में कोई ख़ुशी नहीं लेकिन
ना-आश्ना-ए-दर्द नहीं बेवफ़ा नहीं
नादान दिल-फ़रेब मोहब्बत न खा कभी
बहारों को चमन याद आ गया है
जब से आया हूँ तेरे गाँव में
अगर क़दम तिरे मय-कश का लड़खड़ा जाए
सफ़र-ए-ज़िंदगी नहीं आसाँ
मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन
जी रहा हूँ कुछ इस तरह जैसे