जीने Poetry (page 8)

निगाह तूर पे है और जमाल सीने में

रम्ज़ अज़ीमाबादी

ज़िंदगी कशमकश-ए-वक़्त में गुज़री अपनी

राम रियाज़

रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया

राम रियाज़

लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं

राम रियाज़

तुझे अच्छा बुरा जैसा लगा हूँ

राम नाथ असीर

मोहब्बत हासिल-ए-दुनिया-ओ-दीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

घनी-घनेरी रात में डरने वाला मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

किस तरह जीते हैं ये लोग बता दो यारो

राजेन्द्र कृष्ण

इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी

राजेश रेड्डी

बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे

राजेश रेड्डी

ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ

राजेश रेड्डी

जो कहीं था ही नहीं उस को कहीं ढूँढना था

राजेश रेड्डी

इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी

राजेश रेड्डी

दामन-ए-सद-चाक को इक बार सी लेता हूँ मैं

राजेन्द्र नाथ रहबर

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

रईस सिद्दीक़ी

लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं

राही मासूम रज़ा

जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं

राही मासूम रज़ा

दिलों की राह पर आख़िर ग़ुबार सा क्यूँ है

राही मासूम रज़ा

ज़ीस्त तकरार-ए-नफ़स हो जैसे

इक़बाल माहिर

याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है

इंशा अल्लाह ख़ान

तेरे दिल से उतर चुका हूँ मैं

इमरान शनावर

भूक कम कम है प्यास कम कम है

इमरान शनावर

इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं

इमरान शमशाद

आँखें न जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे

इमदाद अली बहर

अब मरना है अपने ख़ुशी है जीने से बे-ज़ारी है

इमदाद अली बहर

ताज़गी है सुख़न-ए-कुहना में ये बाद-ए-वफ़ात

इमाम बख़्श नासिख़

दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मेरा मालिक जब तौफ़ीक़ अर्ज़ानी करता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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