इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
हमारे पास मरने के लिए फ़ुर्सत ज़ियादा थी
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हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
साथ 'ग़ालिब' के गई फ़िक्र की गहराई भी
या ख़ुदा अब के ये किस रंग में आई है बहार
जुस्तुजू का इक अजब सिलसिला ता-उम्र रहा
सब लोग इस से पहले कि देवता समझते
किस ने पाया सुकून दुनिया में
जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी
बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने
मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन