किस ने पाया सुकून दुनिया में
ज़िंदगानी का सामना कर के
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दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ
दरवाज़े के अंदर इक दरवाज़ा और
जुस्तुजू का इक अजब सिलसिला ता-उम्र रहा
बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया
ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
दोस्तों का क्या है वो तो यूँ भी मिल जाते हैं मुफ़्त
वो दिल से कम ज़बाँ ही से ज़ियादा बात करता था
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है