दोस्तों का क्या है वो तो यूँ भी मिल जाते हैं मुफ़्त
रोज़ इक सच बोल कर दुश्मन कमाने चाहिएँ
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Allama Iqbal
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दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून
वो दिल से कम ज़बाँ ही से ज़ियादा बात करता था
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
सुना है ये जहाँ अच्छा था पहले
अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास
ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए
हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है
बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी
जिस को भी देखो तिरे दर का पता पूछता है
ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ