बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी
जहाँ छोटा सा आईना था पहले
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अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं
न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़
अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास
बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे
दिल भी बच्चे की तरह ज़िद पे अड़ा था अपना
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है
हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है