मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
ज़मीं के हर खिलौने की मगर क़ीमत ज़ियादा थी
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बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
किया ईजाद जिस ने भी ख़ुदा को
हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है
ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए
आदमी ही के बनाए हुए ज़िंदाँ हैं ये सब
जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
जुस्तुजू का इक अजब सिलसिला ता-उम्र रहा
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने
रंग मौसम का हरा था पहले
जाने कितनी उड़ान बाक़ी है
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता