मैं ने तो ब'अद में तोड़ा था इसे
आईना मुझ पे हँसा था पहले
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(505) Peoples Rate This
वो दिल से कम ज़बाँ ही से ज़ियादा बात करता था
दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ
कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है
ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
ग़म बिक रहे थे मेले में ख़ुशियों के नाम पर
न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ
मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन
लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम
दिल भी बच्चे की तरह ज़िद पे अड़ा था अपना