कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ
कुछ को लेकिन आसमानों के ख़ज़ाने चाहिएँ
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इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है
जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है
मैं ने तो ब'अद में तोड़ा था इसे
सुना है ये जहाँ अच्छा था पहले
दुनिया से, जिस से आगे का सोचा नहीं गया
कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने
सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया
ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं