कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने
जैसे कि ख़ुद पे कोई एहसान कर लिया है
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नींद को ढूँड के लाने की दवाएँ थीं बहुत
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी
हाथ उठाता है दुआओं को फ़लक भी उस दम
है कोई बैर सा उस को मिरी तदबीर के साथ
कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब
जो कहीं था ही नहीं उस को कहीं ढूँढना था
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
हर एक साँस ही हम पर हराम हो गई है
सब लोग इस से पहले कि देवता समझते