सब लोग इस से पहले कि देवता समझते
हम ने ज़रा सा ख़ुद को इंसान कर लिया है
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(601) Peoples Rate This
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
सुना है ये जहाँ अच्छा था पहले
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ
अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है
हाथ उठाता है दुआओं को फ़लक भी उस दम
अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
वो दिल से कम ज़बाँ ही से ज़ियादा बात करता था
मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन
बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी