मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन
किसी की ज़िंदगी में मेरा हिस्सा क्यूँ नहीं होता
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सुना है ये जहाँ अच्छा था पहले
न जिस्म साथ हमारे न जाँ हमारी तरफ़
अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास
बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी
किस ने पाया सुकून दुनिया में
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून
या ख़ुदा अब के ये किस रंग में आई है बहार
कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए