ग़म बिक रहे थे मेले में ख़ुशियों के नाम पर
मायूस हो के लौटे हैं हर इक दुकाँ से हम
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दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
सोच लो कल कहीं आँसू न बहाने पड़ जाएँ
दिल भी बच्चे की तरह ज़िद पे अड़ा था अपना
कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने
मैं ने तो ब'अद में तोड़ा था इसे
या ख़ुदा अब के ये किस रंग में आई है बहार
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
साथ 'ग़ालिब' के गई फ़िक्र की गहराई भी
आदमी ही के बनाए हुए ज़िंदाँ हैं ये सब
ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए
रंग मौसम का हरा था पहले
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा