रंग मौसम का हरा था पहले
पेड़ ये कितना घना था पहले
मैं ने तो ब'अद में तोड़ा था इसे
आईना मुझ पे हँसा था पहले
जो नया है वो पुराना होगा
जो पुराना है नया था पहले
ब'अद में मैं ने बुलंदी को छुआ
अपनी नज़रों से गिरा था पहले
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बड़ी तस्वीर लटका दी है अपनी
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ
कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब
सोच लो कल कहीं आँसू न बहाने पड़ जाएँ
नींद को ढूँड के लाने की दवाएँ थीं बहुत
बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे
सब लोग इस से पहले कि देवता समझते
किस ने पाया सुकून दुनिया में
मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन
शौक़ की हद को अभी पार किया जाना है
दरवाज़े के अंदर इक दरवाज़ा और
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है