आदमी ही के बनाए हुए ज़िंदाँ हैं ये सब
कोई पैदा नहीं होता किसी ज़ंजीर के साथ
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
शौक़ की हद को अभी पार किया जाना है
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
घर से निकले थे हौसला कर के
कुछ इस क़दर मैं ख़िरद के असर में आ गया हूँ
लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है
दरवाज़े के अंदर इक दरवाज़ा और
बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
ऐसे न बिछड़ आँखों से अश्कों की तरह तू