जुस्तुजू का इक अजब सिलसिला ता-उम्र रहा
ख़ुद को खोना था कहीं और कहीं ढूँढना था
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मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन
किया ईजाद जिस ने भी ख़ुदा को
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
आदमी ही के बनाए हुए ज़िंदाँ हैं ये सब
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है
यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ
ज़िंदगी तू ने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं
या ख़ुदा अब के ये किस रंग में आई है बहार
मैं ने तो ब'अद में तोड़ा था इसे
ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ