शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(669) Peoples Rate This
सब लोग इस से पहले कि देवता समझते
आदमी ही के बनाए हुए ज़िंदाँ हैं ये सब
लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है
बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे
ग़म बिक रहे थे मेले में ख़ुशियों के नाम पर
किस ने पाया सुकून दुनिया में
कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने
हाथ उठाता है दुआओं को फ़लक भी उस दम
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं
सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया