ज़िंदगी कशमकश-ए-वक़्त में गुज़री अपनी
दिन ने जीने न दिया रात ने मरने न दिया
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तेरी महफ़िल में सितारे कोई जुगनू लाया
गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला
रौशनी वाले तो दुनिया देखें
हम ओस के क़तरे हैं कि बिखरे हुए मोती
आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे
मुस्कुराती आँखों को दोस्तों की नम करना
इस डर से इशारा न किया होंट न खोले
किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया
अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ
ज़र्रा इंसान कभी दश्त-नगर लगता है
दिल में तो बहुत कुछ है ज़बाँ तक नहीं आता