हम ओस के क़तरे हैं कि बिखरे हुए मोती
धोका नज़र आए तो हमें रोल के देखो
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किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया
आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे
इस डर से इशारा न किया होंट न खोले
सरमा था मगर फिर भी वो दिन कितने बड़े थे
कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है
न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं
ज़िंदगी तो सपना है कौन 'राम' अपना है
दिल में तो बहुत कुछ है ज़बाँ तक नहीं आता
किसी मरक़द का ही ज़ेवर हो जाएँ
रौशनी वाले तो दुनिया देखें