जो तेरे ग़म में जले हैं वो फिर बुझे ही नहीं
जब इन की राख कुरेदो शरारे ज़िंदा हैं
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(639) Peoples Rate This
तिरे इंतिज़ार में इस तरह मिरा अहद-ए-शौक़ गुज़र गया
लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं
न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं
आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे
रौशनी वाले तो दुनिया देखें
सरमा था मगर फिर भी वो दिन कितने बड़े थे
मैं अँधेरों का पुजारी हूँ मिरे पास न आ
मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले
अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ
ज़िंदगी तो सपना है कौन 'राम' अपना है
लफ़्ज़ बे-जाँ हैं मिरे रूह-ए-मआनी मुझे दे