जीने Poetry (page 6)

आज़माइश शर्त थी

सत्यपाल आनंद

आरज़ूओं के शगूफ़ों को जला कर देखो

सत्य नन्द जावा

बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो

सरवर मजाज़

मरने का पता दे मिरे जीने का पता दे

सरमद सहबाई

लाख हो माज़ी दामन-गीर

सरदार सोज़

दिन-ब-दिन सफ़्हा-ए-हस्ती से मिटा जाता हूँ

सरदार सलीम

मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ शोला-बयानी उसी की है

सदार आसिफ़

सितमगर तुझ से हम कब शिकवा-ए-बेदाद करते हैं

सरस्वती सरन कैफ़

वही जीने की आज़ादी वही मरने की जल्दी है

साक़ी फ़ारुक़ी

सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर

साक़ी फ़ारुक़ी

सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने

साक़ी फ़ारुक़ी

सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए

साक़ी फ़ारुक़ी

दर्द पुराना आँसू माँगे आँसू कहाँ से लाऊँ

साक़ी फ़ारुक़ी

धूप पीछा नहीं छोड़ेगी ये सोचा भी नहीं

सलमा शाहीन

हवा से इस्तिफ़ादा कर लिया है

सालिम सलीम

कहीं पे चीख़ होगी और कहीं किलकारियां होंगी

सलीम रज़ा रीवा

अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें

सलीम सिद्दीक़ी

तुझ को पाने के लिए ख़ुद से गुज़र तक जाऊँ

सलीम सिद्दीक़ी

अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें

सलीम सिद्दीक़ी

कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते

सलीम कौसर

उसे ख़ुद को बदल लेना गवारा भी नहीं होता

सलीम फ़राज़

आँखें

सलीम अहमद

वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे

सलीम अहमद

पहली नज़्म

सलाहुद्दीन परवेज़

ज़ख़्म खुले पड़ते हैं दिल के मौसम है ये बहारों का

सज्जाद बाक़र रिज़वी

पूछो मुझे ऐ हम-नफ़साँ कौन हूँ क्या हूँ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

क्या इश्क़ का लें नाम हवस आम नहीं है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

बे-दिली वो है कि मरने की तमन्ना भी नहीं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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