जीने Poetry (page 4)

नज़्म

शीरीं अहमद

मंज़िलों का निशान कब देगा

शीन काफ़ निज़ाम

न महफ़िल ऐसी होती है न ख़ल्वत ऐसी होती है

शाज़ तमकनत

तेरी सी भी आफ़त कोई ऐ सोज़िश-ए-तब है

शौक़ क़िदवाई

लब चुप हैं तो क्या दिल गिला-पर्दाज़ नहीं है

शौक़ क़िदवाई

अक़्ल की कुछ कम नहीं है रहबरी मेरे लिए

शौक़ बहराइची

अपने तमाशे का टिकट

शारिक़ कैफ़ी

ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है

शारिक़ कैफ़ी

बड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझे

शारिक़ कैफ़ी

दिखाई देंगे जो गुल मेज़ पर क़रीने से

शारिक़ जमाल

पस्पाई

शरीफ़ कुंजाही

तिश्ना-लब कोई जो सर-गश्ता सराबों में रहा

शरर फ़तेह पुरी

ग़म दिए हैं तो मसर्रत के गुहर भी देना

शम्स रम्ज़ी

न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में

शमीम जयपुरी

जब शिकायत थी कि तूफ़ाँ में सहारा न मिला

शमीम जयपुरी

बे-गुनाही का हर एहसास मिटा दे कोई

शमीम जयपुरी

आज जीने की कुछ उम्मीद नज़र आई है

शमीम जयपुरी

तीरगी चाँद को इनआम-ए-वफ़ा देती है

शमीम हनफ़ी

लक़ड़हारे तुम्हारे खेल अब अच्छे नहीं लगते

शमीम हनफ़ी

तन्हाई का ग़म ढोएँ और रो रो जी हलकान करें

शाकिर ख़लीक़

गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना

शकील बदायुनी

आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया

शकील बदायुनी

था पास अभी किधर गया दिल

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न बुलबुल में न परवाने में देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

देखने से तिरे जी पाता हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

मौत आती नहीं क़रीने की

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

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