जीने के मअनी आँखें हैं
तेरी आँखें जीना भी हैं जीने का उस्लूब भी हैं
आँखों से आँखों के मिलने में जो लज़्ज़त है
वो जीने की लज़्ज़त है
मैं ने तेरी आँखों से दुख सह कर भी जीना सीखा
जब से इन आँखों से दूर हुआ हूँ
मैं जीना भूल गया हूँ
अपना रस्ता भूल गया हूँ
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इस आँख में ख़्वाब-ए-नाज़ हो जा
आँखें
न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था
ये नहीं है कि नवाज़े न गए हों हम लोग
मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का
दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए
हाल मत पूछ मोहब्बत का हवा है कुछ और
मैं ग़म को बसा रहा हूँ दिल में
सफ़र
खेल
वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी
मैं वो मअ'नी-ए-ग़म-ए-इश्क़ हूँ जिसे हर्फ़ हर्फ़ लिखा गया