वो एक लम्हा जो ''अब'' नहीं है
गुज़र चुका है
है आने वाला
गुज़र चुका है जो एक लम्हा वो मैं नहीं हूँ
है आने वाला जो एक लम्हा वो तू नहीं है
कि एक लम्हा हैं
दोनों हम तुम
वो एक लम्हा जो सिर्फ़ ''अब'' है
यही अज़ल है
यही अबद है
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वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी
घास में जज़्ब हुए होंगे ज़मीं के आँसू
कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं
ये चाहा था कि पत्थर बन के जी लूँ
मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का
दुख दे या रुस्वाई दे
तर्क उन से रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात हो गई
आँसुओं से तू है ख़ाली दर्द से आरी हूँ मैं
दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ
किसी को क्या बताऊँ कौन हूँ मैं
दिया
बदन की आग को कहते हैं लोग झूटी आग