घास में जज़्ब हुए होंगे ज़मीं के आँसू
पाँव रखता हूँ तो हल्की सी नमी लगती है
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ख़ैर का तुझ को यक़ीं है और उस को शर का है
दिल के लेने से 'सलीम' उस को नहीं है इंकार
ख़ुश-नुमा लफ़्ज़ों की रिश्वत दे के राज़ी कीजिए
इश्क़ और इतना मोहज़्ज़ब छोड़ कर दीवाना-पन
दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए
एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई
जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं
मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ
दिल जो इस बज़्म में आता है तो जाता ही नहीं
दुख दे या रुस्वाई दे
किसी को क्या बताऊँ कौन हूँ मैं
आँखों में सितारे से चमकते रहे ता-देर