दुख दे या रुस्वाई दे
ग़म को मिरे गहराई दे
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जिस का इंकार भी इंकार न समझा जाए
हाल मत पूछ मोहब्बत का हवा है कुछ और
तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
मेरा दुश्मन
अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया
बदन की आग को कहते हैं लोग झूटी आग
न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था
दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ