दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ
गाहक को दुकान दे रहा हूँ
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बुरा लगा मिरे साक़ी को ज़िक्र-ए-तिश्ना-लबी
नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
बदन की आग को कहते हैं लोग झूटी आग
ख़ैर का तुझ को यक़ीं है और उस को शर का है
मुझे हर्फ़-ए-ग़लत समझा था तू ने
'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का
किसी दश्त का लब-ए-ख़ुश्क हूँ जो न पाए मुज़्दा-ए-आब तक
जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में
तिरे साँचे में ढलता जा रहा हूँ
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
सफ़र में इश्क़ के इक ऐसा मरहला आया
जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं