नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी
वो दिन भी थे तिरे एहसास में ख़ुदा था मैं
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वो जुनूँ को बढ़ाए जाएँगे
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
कैसे क़िस्से थे कि छिड़ जाएँ तो उड़ जाती थी नींद
उन को जल्वत की हवस महफ़िल में तन्हा कर गई
ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है
सफ़र
सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
किसी दश्त का लब-ए-ख़ुश्क हूँ जो न पाए मुज़्दा-ए-आब तक
मजबूरियों का पास भी कुछ था वफ़ा के साथ
मैं वो मअ'नी-ए-ग़म-ए-इश्क़ हूँ जिसे हर्फ़ हर्फ़ लिखा गया
सफ़र में इश्क़ के इक ऐसा मरहला आया
कौन तू है कौन मैं कैसी वफ़ा