कौन तू है कौन मैं कैसी वफ़ा
हासिल-ए-हस्ती हैं कुछ रुस्वाइयाँ
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जा के फिर लौट जो आए वो ज़माना कैसा
अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया
मंज़िल का पता है न किसी राहगुज़र का
इक पतिंगे ने ये अपने रक़्स-ए-आख़िर में कहा
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ
मैं ग़म को बसा रहा हूँ दिल में
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में
ख़ुश-नुमा लफ़्ज़ों की रिश्वत दे के राज़ी कीजिए
लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा
मैं तुझ को कितना चाहता हूँ