देवता बनने की हसरत में मुअल्लक़ हो गए
अब ज़रा नीचे उतरिए आदमी बन जाइए
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
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Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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इतनी काविश भी न कर मेरी असीरी के लिए
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
नुक़्ता
उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया
अब
तिरे साँचे में ढलता जा रहा हूँ
इक आग सी जलती रही ता-उम्र लहू में
मैं ग़म को बसा रहा हूँ दिल में
रस्म-ए-जहाँ न छूट सकी तर्क-ए-इश्क़ से
कोई नहीं जो पता दे दिलों की हालत का
बजा ये रौनक़-ए-महफ़िल मगर कहाँ हैं वो लोग
हर आँख का हासिल दूरी है