इतनी काविश भी न कर मेरी असीरी के लिए
तू कहीं मेरा गिरफ़्तार न समझा जाए
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स्वाँग भरता हूँ तिरे शहर में सौदाई का
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
हाल-ए-दिल ना-गुफ़्तनी है हम जो कहते भी तो क्या
वो बे-ख़ुदी थी मोहब्बत की बे-रुख़ी तो न थी
मुझे गिला न किसी संग का न आहन का
मेरा शोर-ए-ग़र्क़ाबी ख़त्म हो गया आख़िर
मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ
हम हैं और राह-ए-कू-ए-बदनामी
आँखों में सितारे से चमकते रहे ता-देर
वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई
जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं