हम ने शिकवा कभी किया न करें
शिकवा है ए'तिराफ़ नाकामी
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इक आग सी जलती रही ता-उम्र लहू में
बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे
न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर
लिबास-ए-दर्द भी हम ने उतारा
हर आँख का हासिल दूरी है
ख़ुश-नुमा लफ़्ज़ों की रिश्वत दे के राज़ी कीजिए
आँखों में सितारे से चमकते रहे ता-देर
दश्त ओ दर ख़ैर मनाएँ कि अभी वहशत में
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
क़ुर्ब-ए-बदन से कम न हुए दिल के फ़ासले
मेरा चेहरा
देखने के लिए इक शर्त है मंज़र होना